एक तरफ सुशासन तिहार, तो दूसरी ओर शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं

सरकार के मंसूबों पर पानी फेर रहे जिले के अफसर
सक्ती। सक्ती जिले के सरकार के नुमाइंदे ही शायद ऐसा नहीं होने देना चाहते हैं और ये हम यूं ही नहीं कह रहे बल्कि इसके पीछे बेहद ही दिलचस्प तर्क भी हैं।
आइये जानते हैं कि हम ऐसा क्यों कह रहे हैं
शिकायतों पर नहीं होती कोई कार्यवाही, मांग भी नही होती पूरी दरअसल ना सिर्फ जैजैपुर बल्कि सक्ती जिले में ही किसी भी विभाग के आवक-जावक की जांच करा लें सरकार को सैकड़ों नहीं बल्कि हजारों शिकायतें मिल जाएंगी लेकिन कार्यवाही नाम मात्र के किसी एक आध पर ही हो पा रही है फिर भले ही आरोप कितने भी संगीन क्यों न हो।
ये रहे कुछ मामले जिससे खुल जाएगी पोल
खनिज विभाग : इनके तो कहने ही क्या। इनके द्वारा तुरंत वाहन जब्त किया जाता है और ऑफिस पहुंचते पहुंचते वाहन जगह से गायब हो जाता है और फिर कार्यवाही समाप्त कर दिया जाता, कुछ ऐसा ही मामला अकलसरा में हो रहे अवैध उत्खनन की शिकायत पर पहुंचे खनिज अमले के द्वारा देखने को मिला था।
अनेकों शिकायतों के बाद भी मुख्यकार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत जैजैपुर द्वारा भारी मात्रा में शासकीय राशि का फर्जीवाडा करने वाले अपने अधीनस्थ सरपंच, सचिव और रोजगार सहायक को अपने निज स्वार्थ साधने के लिए क्लीन चिट देकर बचाया गया है जबकि सारे सबूत उनके खिलाफ है और शिकायतें जांच में सही भी पाई जा चुकी है।
जिला सीईओ भी ज.पं. सीईओ के नक्शेकदम पर यही नहीं जब उक्त मामलों को जिला पंचायत सीईओ के पास ले जाया गया तो वो भी बस आश्वासन के मास्टर निकले कई बार सरपंच, सचिव, रोजगार सहायकों झूठे जाँच रिपोर्ट के सहारे बचाने वाले सीईओ के खिलाफ शिकायतें और बयान देने के बाद भी एक अदद बार भी कोई तुच्छ सा भी कार्यवाही नहीं कर सके।
कलेक्टर साहब से भी अलग अलग मामलों और विभागों की ढेर सारी शिकायतें हो चुकी पर कार्यवाही जीरो बटा सत्राटा ही रहा है जो यह बताने के लिए काफी है कि जिले में कितना सुशासन है।
आबकारी विभाग के तो अपने ही कानून हैं जब चाहा कार्यवाही किया जब चाहा खुला बिक्री के लिए छोड़ दिया गया है शायद सिर्फ कमीशन के लिए, ना कोई दौरा ना कोई कड़ाई और ना कोई डर, बल्कि अब हर गाँव में शराब कोचिये हो गये और अंग्रेजी स्व ज्यादा देशी महुआ दारु का विक्री बेहिसाब बढ़ गया है लेकिन आबकारी वालों के कहीं कोई दौरा नहीं शायद कमीशन में बंधे पड़े है जैसा कि शराब बेचने वाले बताते भी हैं और यदि उनकी मानें तो आबकारी को प्रत्येक महिने 5000/- और स्थानीय पुलिस को 10000/- प्रति महीना देते हैं जिससे उन्हें कोई नहीं पकड़ता है।
राजस्व विभाग तो अपने चिर- परिचित अंदाज में आज भी अडिग है चाहे शासकीय भूमि की रजिस्ट्री हो या अन्य कार्य बस पटवारी और राजस्व निरीक्षक को पैसे दो काम हो जाएगा फिर कितने ही शिकायत करो तहसीलदार और अनुविभागीय अधिकारी के कान में जूं तक नहीं रेंगती। उदाहरण के लिए आमगांव की शासकीय जमीन की डबल रजिस्ट्री।
सहकारिता और खाद्य विभाग: सबसे ज्यादा घोटाले के मामले अब राजस्व विभाग को भी पीछे छोड़ता हुआ विभाग है सहकारिता और खाद्य विभाग जो प्रत्येक धान खरीदी के दौरान लाखों का नहीं बल्कि करोड़ों रुपयों के घोटाले को सिर्फ लेन देन करके दबा देता है, ताजा मामला खजुरानी, अकलसरा भोथिया और जमड़ी उपार्जन केंद्र से जुड़ा है जिनके बारे में कई कई शिकायतें हुई है लेकिन यहाँ तो सिर्फ पैसा बोलता है।
विद्युत विभाग : जिनके ऊपर हमेशा सबको उजाले में रखने की जिम्मेदारी रहती है वो बिजली विभाग भी लोगों को अंधेरे में रखने से बाज नहीं अ रहा है नियमानुसार आवेदन और सारी प्रक्रिया पूर्ण कर लेने के बावजूद एक कनेक्शन लेने अथवा नए बिजली पोल (खम्बा) लगाने के लिए घूस चाहिए घूस लेने के बाद भी कई कई महीने घुमाया जा रहा है।
इनके अलावा शिक्षा विभाग में कई शिकायतें कोई कार्यवाही नहीं, सिंचाई विभाग में शिकायतें, वन विभाग में तो जंगलराज ही चल रहा है, लोक स्वास्थ्य विभाग, लोक निर्माण विभाग स्वास्थ्य विभाग, आदिवासी विकास विभाग सहित ऐसा कोई विभाग नहीं है जहाँ शिकायतों पर त्वरित संज्ञान लेकर कार्यवाही होती हो, लेकिन अब सुनेगा भी कौन? अब बताइये क्या ऐसे आएगा सुशासन?