शैक्षणिक भ्रमण से मिलता है हमें वास्तविक ज्ञान

अनुभव की अनुभूति देती है अविस्मरणीय परिणाम
शा. उ. मा. वि. ओड़ेकेरा के विद्यार्थियों को कराया गया शैक्षणिक भ्रमण
जैजैपुर। शैक्षणिक भ्रमण का शिक्षा के क्षेत्र में अपना विशेष महत्व है, शैक्षणिक भ्रमण से हम प्रकृति की सुंदरता से रूबरू होते हैं। मानव की सुंदर कलाकृतियों से परिचित होते हैं एवं कुदरत के कुछ रहस्य से भी परिचित होते हैं। जिससे हमारे ज्ञान में वृद्धि होती है। शैक्षणिक भ्रमण में हम परोक्ष नहीं बल्कि प्रत्यक्ष रूप से रस अनुभूति करते हुए ज्ञान में वृद्धि करते हैं, इस प्रकार के भ्रमण से हम सभी एक साथ मिलजुल कर रहने की कला सिखते हैं एवं अनुशासन व्यवस्था आदि को नजदीकी से जानते एवं समझते हैं। शा. उ. मा. वि. ओड़ेकेरा के कक्षा 12 वीं के विद्यार्थियों को एक दिवसीय शैक्षणिक भ्रमण (सिरपुर, गिरौदपुरी, शिवरीनारायण) कराया गया। प्रातः 6:00 बजे हम सभी वहां पर पूर्व नियोजित योजना के अनुसार दो बस खड़े थे एक बस में लड़कियों को तथा दूसरे बस में लड़कों को बैठाया गया। काफी रोमांचित कर देने वाला यह शैक्षिक भ्रमण रहा। हम बस में सवार होकर सभी विद्यार्थी हंसते, गाते, गुनगुनाते अपनें गंतव्य के लिए निकल पड़े थे। धीरे-धीरे हमारी यात्रा सिरपुर पहुंच गए। सभी विद्यार्थियों में एक खासा उल्लास बना हुआ था क्योंकि उनकी प्रतीक्षित शैक्षणिक भ्रमण का कार्यक्रम सफल होने जा रहा था।

सुरम्य वनों के बीच व महानदी के किनारे स्थित सिरपुर बड़ा मनभावन लग रहा था क्योंकि प्रकृति के बीच प्रत्येक व्यक्ति का मन आनंदित होकर खिल उठता है। नाश्ता के रूप में खीर, पुड़ी आदि की व्यवस्था की गई थी जो काफी जायकेदार रही। उसके बाद सभी विद्यार्थियों को गन्धेश्वर महादेव का दर्शन कराया गया एवं मंदिर के इतिहास से बच्चों को रूबरू कराया गया। छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा कहलाने वाली महानदी के सुंदर और पावन तट पर स्थापित हैं गंधेश्वर महादेव। आपको बता दें कि सिरपुर को छत्तीसगढ़ का ‘बाबा धाम’ भी कहते हैं। सावन माह और महाशिवरात्रि के दौरान गंधेश्वर महादेव मंदिर में शिवलिंग के एक स्पर्श के लिए भक्तों का हुजूम उमड़ता है। वहीं दूर- दूर से यहां शिव जी को जल अर्पित करने के लिए आए कांवड़ियों की पंक्तियां देखते ही बनती हैं, जिनके कारण पूरा माहौल शिवमय हो जाता है। गंधेश्वर महादेव की ख्याति भक्तों को यहां खींच कर लाती है। उसके बाद में जी भर के फोटोग्राफी किया गया। उसके बाद बच्चों को सुरंग टीला बतलाया गया। सुरंग टीला का विशाल मंदिर 2005-06 में खोजा गया था। मंदिर परिसर एक विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है और मुख्य मंदिर 37 खड़ी चूना पत्थर की सीढ़ियों द्वारा ऊंचा खड़ा है। ऐसा माना जाता है कि 12वीं शताब्दी ई. के आसपास एक विनाशकारी भूकंप ने इसे प्रभावित किया था और सीढ़ियों पर अभी भी इस आपदा के दृश्य प्रभाव दिखाई देते हैं। उसके बाद बच्चों को भोजन कराकर लक्ष्मण मंदिर ले जाया गया। सिरपुर के लक्ष्मण मंदिर का निर्माण सन् 525 से 540 के बीच हुआ। सिरपुर (श्रीपुर) में शैव राजाओं का शासन हुआ करता था। इन्हीं शैव राजाओं में एक थे सोमवंशी राजा हर्षगुप्त। हर्षगुप्त की पत्नी रानी वासटादेवी, वैष्णव संप्रदाय से संबंध रखती थीं, जो मगध नरेश सूर्यवर्मा की बेटी थीं। राजा हर्षगुप्त की मृत्यु के बाद ही रानी ने उनकी याद में इस मंदिर का निर्माण कराया था। यही कारण है कि लक्ष्मण मंदिर को एक हिन्दू मंदिर के साथ नारी के मौन प्रेम का प्रतीक भी माना जाता है। वहाँ के संग्रहालय में स्थिति 7वीं शताब्दी के पाषाण प्रतिमा को भी बच्चों को दिखलाया गया।
उसके बाद हमारी यात्रा सतनाम पंथ का प्रमुख धाम गिरौदपुरी के लिए निकल पड़ी। ये धाम छत्तीसगढ़वासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। बाबा गुरु घासीदास की जन्मस्थली और तपोभूमि गिरौदपुरी में दुनिया का सबसे ऊंचा जैतखाम बनाया गया है। गिरौदपुरी में बना भव्य जैतखाम आकर्षण का केंद्र है। इंजीनियरिंग का करिश्मा कहा जाने वाला ये मोन्यूमेंट अपनी संरचना के चलते बेहद शानदार है, इसकी ऊंचाई दिल्ली की कुतुबमीनार से भी ज्यादा है। विद्यालय के शैक्षणिक भ्रमण में वापसी के समय में सौभाग्य से हमारे बस की टायर शिवरीनारायण पंचर हो गई हमें दुधाधारी मठ रायपुर के महामंडलेश्वर महंत राम सुंदर दास जी के दर्शन व उनके आशीर्वचन को सुनने का सौभाग्य मिला। महंत जी ने भी हम सबको उज्जवल भविष्य की शुभकामनायें दी। छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक नगरी शिवरीनारायण के इतिहास व महत्व के बारे में हम सभी को परिचित कराये, शैक्षणिक भ्रमण के लाभ तथा विद्यार्थियों के विभिन्न प्रकार के जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। भोजन प्रसादी भी हम सभी को कराया गया। उसके बाद हम सभी सकुशल वापस घर लौट आये।