छत्तीसगढ़

धमतरी बना जल संरक्षण का रोल मॉडल

धान के बदले दलहन-तिलहन ने बदली किसानों की सोच

धमतरी। छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले में किसानों ने ग्रीष्मकालीन धान के बजाय चना, सरसों, मूंग, अलसी, तोरिया, सूर्यमुखी जैसी दलहन-तिलहन फसलों की खेती को अपनाकर जल संरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक कदम बढ़ाया है। इस बदलाव ने किसानों की सोच में परिवर्तन लाते हुए करीब 7,539 करोड़ लीटर पानी की बचत की और लगभग 2,641 करोड़ रुपये के संभावित आर्थिक लाभ का मार्ग प्रशस्त किया।

पिछले वर्ष जिले में 30,339 हेक्टेयर में गर्मी की धान की खेती की गई थी, जो इस वर्ष मात्र 24,056 हेक्टेयर रह गई। कृषि विशेषज्ञों के अनुसार, 6,283 हेक्टेयर धान रकबे में कमी से, न केवल पानी की बचत हुई बल्कि 151 करोड़ यूनिट बिजली और 754 करोड़ रुपये की ऊर्जा लागत को भी कम हुआ है। साथ ही खेती की लागत घटने से किसानों को 3 करोड़ रुपये की अतिरिक्त बचत हुई।

जिला प्रशासन ने गांव-गांव जाकर जागरूकता अभियान चलाया और किसानों को धान की जगह दलहन-तिलहन फसलों की खेती के फायदे बताए। 28 हजार से अधिक किसानों की सहभागिता से यह अभियान सफल रहा। परसतराई गांव के सरपंच श्री परमानंद आडिल ने बताया कि पानी की कमी से खराब हुई फसल ने किसानों को सोचने पर मजबूर किया। इसके बाद सामूहिक निर्णय लेकर दलहन-तिलहन की खेती को प्राथमिकता दी गई, जिससे पानी की बचत, खेती लागत में कमी और आय में वृद्धि हुई।

धमतरी का यह फसल चक्र परिवर्तन मॉडल अब 494 गांवों में फैल चुका है। इससे जल स्तर में सुधार, मिट्टी की उर्वरता बढ़ने और खेती को अधिक लाभदायक बनाने में मदद मिली है। राष्ट्रीय जल संरक्षण पुरस्कार विजेता देवी साहू का कहना है कि इस बदलाव से गांव का जलस्तर 200 फीट से घटकर अब 75-90 फीट तक आ गया है, जिससे सिंचाई और निस्तारी की समस्या दूर हुई है। धमतरी का यह प्रयास देशभर में जल संरक्षण के लिए एक प्रेरणादायक उदाहरण और भविष्य में खेती को नई दिशा देने में मददगार साबित होगा।

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker