छत्तीसगढ़

चूरी उतारे के परंपरा ल का बंद करे जाय

सुनना भैरा – गोठिया कोंदा “कोंदा-भैरा के गोठ” – सुशील भोले

जांजगीर फर्स्ट न्यूज़। -एक पढ़े लिखे उच्च शिक्षित माईलोगिन के कहना हे जी भैरा के वो मन जब विधवा हो जाथें तभो पहिली च असन कपड़ा-लत्ता पहिनना चाही..
-अच्छा जी कोंदा.. माने रंग-बिरंगा लुगरा-पोलखा?
-हव.. वोकर कहना हे के दशगात्र के दिन घलो वो विधवा होवइया माईलोगिन ल चकाचक रहना चाही.. वोकर कहना हे के जब हमन आज कतकों अकन जुन्ना परंपरा ल छोड़त नवा-नवा परंपरा अउ विज्ञान के आविष्कार मनला अपनावत हावन त ए मरिया-हरिया के भेद ल घलो काबर नइ मिटाना चाही?
-वोकर तर्क ह बने तो जनावत हावय संगी, फेर उही च पूछे रहिते के जब नोनी मन कुंवारी रहिथें, तेन बखत के पहिनावा अउ सिंगार म ही बिहाव के बाद घलो काबर नइ राहय? आखिर इहू म बदलाव करे के का जरूरत हे? आदमी जात मन के पहिनावा म अउ सिंगार म तो जादा बदलाव नइ देखे जाय, फेर माईलोगिन मन म अइसन काबर आथे? का इहू ह फोकटइहा नोहय?

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker