ए बछर किसानी घलो पछुवागे

सुनना भैरा – गोठिया कोंदा “कोंदा-भैरा के गोठ” – सुशील भोले
जांजगीर फर्स्ट न्यूज़। ए बछर मानसून के पछुवाय के सेती हमर किसानी ह घलो पिछुवागे जी भैरा।
सिरतोन आय जी कोंदा.. ए बछर तो प्री-मानसून जेला हमन अंकरस के बरसा कहिथन तेनो ढेरिया दे हवय भई।
हव जी न खेत म अंकरस जोते सकेन अउ न खुर्रा बोनी कर पाएन।
रोपा लगाए बर पहिली जेन नर्सरी बोए जाथे तेकरो तो ए बछर चेत नइ कर पाएन जी संगी.. मोला तो अब सरग भरोसा के किसानी ह जुआ खेले असन होवत जावत हे तइसे जनाथे।
हमर असन एक फसली किसान मन बर तो जुअच आय. अपासी के कुछू साधन नइए त सरग के आसरा म बइठे रहिथन।
हव जी.. ए मौसम के अवई-जवई ह जब ले गड़बड़ाय हे, तब ले जादा च बाय बरोबर होगे हे।
सरकार के नीति घलो तो अनदेखना बरोबर बनथे, हमरो डहार नहर के मुड़ी-पूछी ल लमातीस त जम्मो पानी ल मार फैक्टरी मन के भोभस म भर देथे.. मानो विकास के मापदंड बस उही मन आय.. खेती किसानी ह नोहय तइसे केहे कस।
भइगे.. लोहा लक्कड़ ल लोगन खा-पी के जी जहीं तइसे केहे कस!