सात्विक परंपरा घलो सार्थक होथे

सुनना भैरा – गोठिया कोंदा “कोंदा-भैरा के गोठ” – सुशील भोले
जांजगीर फर्स्ट न्यूज़। आज तोर संगवारी मन के कुर्बानी तिहार आय जी भैरा.. तहूं वोकर मन संग संघरबे नहीं?
ककरो परब-तिहार म संघरना अलग बात आय जी कोंदा, फेर जिहां तक कुर्बानी या पूजवन के बात हे, त ए तो हमरो मन म चलथे.. कोनो बदना के नॉव म करथे त कोनो अउ कुछू के नॉव म।
हव जी ए तो सही आय.. अइसन मामला म कोनो एक वर्ग ऊपर अॅंगरी उठाना सही नोहय.. अब हमरे गाँव के बात ल देख ले.. बोहरही मेला सब म अपन अपन बोकरा ल चॉंउर चबवा के कइसे ओसरी-पारी खड़े रहिथें!
हव जी.. एक-दू पइत सामाजिक संगठन के लोगन रैली निकाल के पूजवन के परंपरा ल सिरवाय बर अरजी-बिनती करीन, फेर कहाँ कोनो मानीन!
नइ तो मानीन.. अब पुरखौती परंपरा ल लोगन हर्रस ले छोड़े घलो तो नइ सकय ना।
हव गा.. फेर तोला कइसे जनाथे, तहूं तो गजब दिन ले साधना-उपासना म रेहे?
मैं तो सात्विक पद्धति ले अपन साधना ल पूरा करे हौं संगी, अउ जेन उद्देश्य ल ले के करे हौं, वोला पाए घलो हौं.. अउ आज वोकरे आधार म कहि सकथौं, के अपन ईष्ट ल मनाए-पाए बर सिरिफ फूल-पान, नरियर के माध्यम ले पूजा करई ह सार्थक होथे।