शिव ही जीव समाना

सुनना भैरा – गोठिया कोंदा “कोंदा-भैरा के गोठ” – सुशील भोले
जांजगीर फर्स्ट न्यूज़। हमर इहाँ कतकों अइसन संत-महात्मा होए हें, जेकर ज्ञान अउ दर्शन ल उंकर अनुयायी मन लुकाए या एती-तेती भटकाए के उदिम घलो कर डारथें जी भैरा।
हाँ.. अइसन ढंग के तो महूं ल जनाथे जी कोंदा।
अब देखना सतगुरु कबीर साहेब ल ही.. वो मन निराकार परमात्मा के उपासना के रद्दा तो बताए हें, फेर वोला उन साकार अउ निराकार दूनोंच रूप एकेच आय घलो कहे हें, फेर उंकर ए महत्वपूर्ण बात ल अनुयायी मन कहाँ बताथें.. उल्टा उन साकार के नॉव म अंते-तंते गोठियाए के उदिम जरूर कर देथें।
हाँ जी.. कतकों झनला अइसन गोठियावत तो महूं सुने हौं।
जबकि कबीर साहेब के महत्वपूर्ण ग्रंथ ‘बीजक’ के एक पद उन खुद कहे हें-“ज्यूं बिम्बहिं प्रतिबिम्ब समाना, उदिक कुम्भ बिगराना, कहैं कबीर जानि भ्रम भागा शिव ही जीव समाना”.. एकर ले स्पष्ट हे- साकार निराकार दूनोंच ल उन एके कहे हें.. जइसे समुंदर म छछले पानी निराकार होथे, फेर उही पानी ल एक मरकी म भर देबे, त वो मरकी के रूप धर लेथे.. माने साकार हो जाथे।