महिला शिक्षा व नारी उत्थान के क्षेत्र में सावित्रीबाई फुले का योगदान अविस्मरणीय – कुसुमलता अजगल्ले

सक्ती। देश में महिला शिक्षा व नारी उत्थान के क्षेत्र में अपने उल्लेखनीय योगदान के लिए भारतवर्ष में लोग उन्हें युगों-युगों तक याद रखेंगे। राष्ट्र माता सावित्रीबाई फुले ने आजीवन अनेक कष्ट, दुख व अपमान की पीड़ा झेलते हुए भारतवर्ष में महिलाओं के लिए 1जनवरी 1848 को पहला स्कूल खोल महिला शिक्षा का सूत्रपात किया था। आज

महिलाएं जीवन के विविध क्षेत्रों में पुरूषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर समाज व देश के प्रगति में अहम् योगदान दे पा रहीं हैं तो इसका सारा श्रेय राष्ट्रमाता सावित्रीबाई फुले को ही जाता है। आज उनके 193 वीं जयंती पर हम उन्हें नमन् करते हुए अपनी श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं। उक्त बातें प्रगतिशील छत्तीसगढ़ सतनामी समाज सक्ती जिले के उपाध्यक्ष श्रीमती कुसुमलता अजगल्ले ने कही। वे 3 जनवरी, बुधवार को मालखरौदा में आयोजित माता सावित्रीबाई फुले की जयंती कार्यक्रम के मौके पर उपस्थित महिलाओं को उनके जीवन संघर्षों तथा नारी उत्थान के क्षेत्र में उनके योगदान को बता रहीं थीं। इस मौके पर आयोजित कार्यक्रम में विशेष रूप से उपस्थित प्रगतिशील छग में

सतनामी समाज सक्ती जिला प्रवक्ता उदय मधुकर ने कहा माता सावित्रीबाई फुले के जीवन संघर्ष व त्याग को आज की पीढ़ी जाने व समझे इसके लिए इस तरह के कार्यक्रमों में निरंतरता की आवश्यकता है। पत्रकार योमप्रकाश लहरे ने कहा देश में महिला शिक्षा के साथ नारी उत्थान के कार्यों में उनके त्याग व संघर्ष के लिए सारा राष्ट्र इनका ऋणी रहेगा। इस मौके पर शकुंतला सोनवाने, शकुन अजगल्ले, कांता बाई, रामबाई, कौशल्या नाग, नीलकुंवर चौहान, कमला बाई बघेल, बृजकुमारी, रामबाई कुर्रे, तथा अमृत संदेश पत्रकार योमप्रकाश लहरे सहित ग्रामीण महिलाएं उपस्थित रहीं। विदित हो कि माता सावित्रीबाई फुले का जन्म 3 जनवरी 1831 को पुणे महाराष्ट्र में हुआ था। उनके पिता का नाम खनदोजी नैवेसे तथा माता का नाम लक्ष्मी बाई था। सावित्रीबाई जब महज 9 साल की थी तभी उनका विवाह 13 साल के ज्योतिबा फुले के साथ हो गया। पढ़ाई में उनके लगन को देखते हुए पति ज्योतिबा फूले नेउन्हें पढ़ाने के निश्चय किया। फिर तमाम सामाजिक बुराइयों को दरकिनार करते हुए ज्योतिबा फुले ने सावित्रीबाई फुले को पढ़ाया। सावित्रीबाई ने अहमदनगर व पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनी। आगे चलकर पति ज्योतिबा के साथ मिलकर 1848 में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला। इसे देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। माता सावित्रीबाई फुले के अथक त्याग व संघर्ष के बदौलत ही इस देश में महिला शिक्षा का सूत्रपात हुआ।