रसायन मुक्त खेती डहार लहुटन

सुनना भैरा – गोठिया कोंदा “कोंदा-भैरा के गोठ” – सुशील भोले
जांजगीर फर्स्ट न्यूज़। ए बछर ले मैं हमर जुन्ना खेती किसानी जेला आजकाल ‘जैविक खेती’ कहिथे, तइसने चालू करे के गुनत हौं जी भैरा।
मन तो मोरो होथे जी कोंदा.. पहिली ददा-बबा मन संग घुरुवा के खातू ल गाड़ा म पलोवन तेन बखत के चॉंउर के सुवाद अउ खुशबू के सुरता करथौं, त अब के ह तो भइगे दुनिया भर के बीमारी संग पेट भरई कस भर होवत हे।
भइगे उत्पादन बढ़ाए के नॉव म रसायन के गुलाम होगे हावन, तभो न सर के न सुवाद के धरती के उत्पादकता घलो सिरावत हे।
हव भई.. जमीन ह अब बने गतर के पानी ल घलो नइ सोख पावय, रासायनिक खातू मन के सेती कतकों किसम के मित्र कीट मन घलो मर जाथें।
ए रसायन मन के सेती खेत-खार के संगे-संग तीर तखार के भुइयॉं मन घलो अपन मूल गुण ल बिसार डारे हे.. अब तैं बर, पीपर अउ गस्ती जइसन पेड़ के पिकरी मनला ही खाके देख ले पहिली के ह जइसे गुत्तुर जनावय, तइसे अब लागबे नइ करय।
सिरतोन आय संगी.. रासायनिक खेती ह चारों मुड़ा ले चौपट कर डारे हे, अब हर किसान ल जैविक खेती डहार लहुटे बर लागही।